Shri Ram Raksha Stotram And Meaning

The Ram Raksha Stotram is a composition by the sage Kaushik, which not only praises Lord Rama but also expresses the desire to fully protect his devotees. Therefore, reciting this stotra is done to protect oneself from all kinds of obstacles and enemies. The recitation of this stotra is also done for protection from the malefic effects of the nine planets.

Shri ram raksha stotram
Shri ram raksha stotram

श्री राम रक्षा स्तोत्रम्

श्री गणेशाय नमः॥
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य बुधकौशिक ऋषि:।
श्रीसीतारामचंद्रो देवता।
अनुष्टुप्‌ छन्द:। सीता शक्ति:।
श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌।
श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षा स्तोत्र जपे विनियोग:॥
अर्थ:
श्री राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं। इस स्तोत्र में माता सीता और श्री रामचंद्र जी देवता हैं, और अनुष्टुप इसका छंद है। इसमें मां सीता को शक्ति और श्री हनुमान जी को कीलक माना गया है। श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए इस स्तोत्र का जाप किया जाता है।

॥ अथ ध्यानम्॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌॥
वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌॥
अर्थ:
मैं उन श्री रामचन्द्र जी का ध्यान करता हूँ जो धनुष-बाण धारण किये हुए हैं, पद्मासन में विराजमान हैं, पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके नेत्र कमल दलों से भी सुन्दर हैं, जो प्रसन्नचित्त हैं, जिनकी दृष्टि बाईं ओर गोद में बैठी माता सीता के मुख कमल पर टिकी है, और जिनका रंग बादलों की तरह श्याम है। वे अजानबाहु हैं, जटाधारी हैं और विभिन्न आभूषणों से विभूषित हैं। राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से पहले हमें ऐसे प्रभु श्री रामचन्द्र जी का ध्यान करना चाहिए।

॥ इति ध्यानम्॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥1॥
अर्थ:
श्री रघुनाथ का चरित्र १०० कोटि के विस्तार वाला है। इस चरित्र का एक- महापातकों का नाश करने वाला [करता] है।

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌॥2॥
अर्थ:
मैं उन भगवान श्री राम का ध्यान करता हूँ, जिनका वर्ण नीलकमल के समान श्याम है, जिनकी आँखें कमल के समान हैं, जो जटाओं के मुकुट से सुशोभित हैं, और जो जानकी और लक्ष्मण के साथ विराजमान हैं।


सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तञ्चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम्॥ 3॥
अर्थ:
मैं उन श्री राम का ध्यान करता हूँ, जो अजन्मे हैं और स्वयं प्रकट हुए हैं, जो सर्वव्यापक हैं, जिनके हाथों में खड्ग, तूणीर, धनुष और बाण हैं, जो राक्षसों के संहार और अपनी लीलाओं से जगत की रक्षा के लिए अवतरित हुए हैं।

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरोमे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥4॥
अर्थ:
मैं सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाले और समस्त पापों का नाश करने वाले श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ। हे राघव मेरे सिर की रक्षा करें, हे दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें।

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियश्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल:॥5॥

अर्थ:
हे कौशल्या के पुत्र श्री राम मेरे नेत्रों की रक्षा करें, हे विश्वामित्र के प्रिय राघव मेरे कानों की रक्षा करें, हे यज्ञ रक्षक श्री राम मेरे घ्राण अर्थात नाक की रक्षा करें और हे सुमित्रा के वत्सल रघुपति मेरे मुख की रक्षा करें।

जिव्हा विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक:॥6॥

अर्थ:
सभी विद्याओं के धारक श्री राम मेरी जिह्वा अर्थात वाणी की रक्षा करें। भरत द्वारा वंदित श्री राम मेरे कंठ की रक्षा करें। दिव्य अस्त्र जिनके कंधों पर सजे हैं, वे श्री रघुपति राम मेरे कंधों की रक्षा करें, और जिन्होंने महादेव जी का धनुष तोड़ा, वे भगवान श्री राम मेरी भुजाओं की रक्षा करें।

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय:॥7॥

अर्थ:
सीता पति श्री राम, मेरे हाथों की संरक्षा करें। जमदग्नि ऋषि के पुत्र - परशुराम को जितने वाले श्री राम, मेरे हृदय की रक्षा करें। खर नामक राक्षस का वध करने वाले प्रभु राम, मेरे शरीर के मध्य भाग की सुरक्षा करें। और जाम्बवन्त को आश्रय देने वाले भगवान श्री राम, मेरी नाभि की रक्षा करें।

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌॥8॥

अर्थ:
सुग्रीव के स्वामी मेरे श्री राम मेरी कमर की रक्षा करें। हनुमान के प्रभु तथा राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुकुल में श्रेष्ठ भगवान श्री राम मेरी हड्डियों की रक्षा करें।

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक:।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः॥9॥

अर्थ:
सागर पर सेतु बांधने वाले श्री राम, मेरे दोनों घुटनों की संरक्षा करें। दशानन - रावण का वध करने वाले भगवान श्री राम, मेरे दोनों जंघाओं की संरक्षा करें। विभीषण को ऐश्वर्य और लंका का राज्य प्रदान करने वाले श्री राम, मेरे सम्पूर्ण शरीर की संरक्षा करें।

॥ फल श्रुति॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥10॥

अर्थ:
जो भक्त भक्ति और श्रद्धा के साथ शुभ कार्य करता है और श्री राम के बल से इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील होता है।

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण:।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि:॥11॥

अर्थ:
जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्म वेश में घूमते रहते हैं, वे श्री राम नाम से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते।

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥12॥

अर्थ:
श्री राम, श्री रामभद्र तथा श्री रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला श्री राम का भक्त पापों से लिप्त नहीं होता, इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है।

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌।
य: कण्ठे धारयेत् तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय:॥13॥

अर्थ:
जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र श्री राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ यानी याद कर लेता है, उसे संपूर्ण सिद्धियां प्राप्त हो जाती है।

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌॥14॥

अर्थ:
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस श्री राम रक्षा कवच का स्मरण करता है, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती है। यह कहा गया है कि, रामरक्षा स्तोत्र ही राम कवच है।

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक:॥15॥

अर्थ:
भगवान शंकर ने स्वप्न में इस श्री राम रक्षा स्तोत्र का आदेश बुधकौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया।

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु:॥16॥

अर्थ:
प्रभु राम जो कल्प वृक्षों के बाग के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं और जो तीनों लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीराम हमारे प्रभु हैं।

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ॥17॥

अर्थ:
जो युवा, सुन्दर, सुकुमार, महाबली और कमल के (पुण्डरीक) समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की समान वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं। महाबली अर्थात, बहुत ही बलवान हैं इस बल के साथ ही उन्होंने राक्षसों का वध किया था।

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ॥18॥

अर्थ:
जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी, तपस्वी और ब्रह्मचारी हैं वे दशरथ के पुत्र श्री राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें।

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ॥19॥

अर्थ:
ऐसे महाबली, रघु श्रेष्ठ समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ, राक्षस कुल का विनाश करने वाले श्री राम हमारी रक्षा करें।

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌ग सङि‌गनौ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌॥20॥

अर्थ:
धनुष संधान किये हुए, बाण का स्पर्श करते हुए अक्षय बाणों से उक्त तूणीर धारण किये श्री राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा के लिए मेरे मार्ग में आगे चलें।

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा।
गच्छन्‌मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण:॥21॥

अर्थ: हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खड्ग तथा धनुष-बाण धारण करने वाले भगवान श्री राम, लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें।

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम:॥22॥

अर्थ:
भगवान शिव का कथन है कि, ऐसे आनंददायक दशरथ के पुत्र श्री लक्ष्मण जिनके सेवक हैं। ऐसे श्री राम बलवान काकुत्स्थ, महापुरुष, पूर्णब्रह्म, कौशल्या के पुत्र रघुकुल में श्रेष्ठ हैं।

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम:॥23॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित:।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय:॥24॥

अर्थ:
वेद शास्त्रों के ज्ञानी, यज्ञों के स्वामी, पुराणों में पुरुषोत्तम, जानकी के प्रिय, श्रीमान और अतुलनीय पराक्रमी श्री राम हैं।ऐसे विभिन्न नामों का नित्य श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता है।

रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर:॥25॥

अर्थ:
दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबर धारी श्री राम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसार चक्र में नहीं पड़ता बल्कि जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है।

रामं लक्ष्मणं पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌,
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌॥26॥

अर्थ:
लक्ष्मण जी के बड़े भाई प्रभु रामजी रघुकुल में सर्वोत्तम हैं। सीता जी के पति वे सुंदर हैं और करुणा का सागर हैं। उनके पास सभी सद्गुण निवास करते हैं। जो ब्राह्मणों के प्रिय हैं और धार्मिक वृत्ति के हैं। ये राजराजेश्वर राम सत्यनिष्ठा हैं।दशरथ के पुत्र श्री राम, जिनका वर्ण सभी में शामिल है। जिनकी शांत मूर्ति लोगों को अत्यंत आनंद देती है। रावण का शत्रु ऐसे प्रभु राम हैं, जो रघुकुल में उत्पन्न हुए हैं, ऐसे प्रभु श्रीराम को मैं वंदन करता हूं।


रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम:॥27॥

अर्थ:
श्री राम, श्री रामभद्र, श्री रामचंद्र, विधाता स्वरूप, श्री रघुनाथ, ऐसे जिनके नाम है उन सीता जी के स्वामी श्री रामचंद्र जी को मैं वंदन करता हूं।

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम॥28॥

अर्थ:
हे रघुनंदन श्री राम! हे भरत के अग्रज अर्थात, ज्येष्ठ बंधु भगवान राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम! आप मुझे शरण दीजिए।

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्री रामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥29॥

अर्थ:
मैं एकाग्र मन से श्री रामचंद्र जी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूं, वाणी द्वारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान श्री रामचंद्र के चरणों में प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूं।

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने॥30॥

अर्थ:
श्री राम मेरे माता, मेरे पिता, मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं। इस प्रकार दयालु श्री राम मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवा मैं किसी दूसरे को नहीं जानता।

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌॥31॥

अर्थ:
जिनके दाईं ओर लक्ष्मण जी, बाईं ओर जनक कन्या जानकीजी और सामने हनुमान जी विराजमान हैं, मैं उन्हीं रघुनाथ जी की वंदना करता हूं।

लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये॥32॥

अर्थ:
मैं संपूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीडा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंशी नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भंडार रुपी श्रीराम की शरण में हूं।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥33॥

अर्थ:
जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानर सेना के प्रमुख श्री राम दूत हनुमान जी की भी शरण में जाता हूं।

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌॥34॥

अर्थ:
मैं कवितामय डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूं।

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌॥35॥

अर्थ:
मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर, उन भगवान राम को बार-बार नमन करता हूं, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-संपत्ति प्रदान करने वाले हैं।

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌॥36॥

अर्थ:
‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता है। राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं।

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर॥37॥

अर्थ:
राजाओं में श्रेष्ठ श्री राम सदा विजय को प्राप्त करते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान (यहां - सीतापति) श्री राम का भजन करता हूं। सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूं।

श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं। मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूं। मैं सदाशिव श्रीराम में ही लीन रहूं। हे श्रीराम! आप मेरा उद्धार करें।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥38॥

अर्थ:
यहां शिव जी माता पार्वती से कह रहे है - हे सुमुखी ! राम नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान है। मैं सदा राम का स्तवन करता हूं और राम-नाम में ही रमण करता हूं।

॥ इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌॥

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु॥

श्री राम रक्षा स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के सारे काम स्वतः सिद्ध हो जाते हैं। इससे मनुष्य के पूर्वकृत पाप कट जाते हैं। इसके उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि स्वयं महादेव ने इसका सबसे पहले पाठ किया था। भगवान शंकर ने बुध कौशिक नामक ऋषि के स्वप्न में आकर यह स्तोत्र सुनाया था। जिसके बाद ऋषि ने प्रातः काल उठकर इसे लिखा था।

श्री राम रक्षा स्तोत्र के पाठ से मंगल का कुप्रभाव खत्म हो जाता है। इस स्तोत्र के पाठ से प्रभु श्रीराम के साथ पवन पुत्र हनुमान भी प्रसन्न होते हैं।

।। शुभं भवतु।।

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Frequently Asked Questions FAQs

What is the Ram Raksha Stotra?

The Ram Raksha Stotra is a hymn composed by Sage Budha Kaushika, believed to offer protection, peace, and prosperity to those who chant it with devotion.

Who composed the Ram Raksha Stotra?

The Ram Raksha Stotra was composed by the sage Budha Kaushika, who is said to have received it in a dream from Lord Shiva.

What is the significance of the Ram Raksha Stotra in Hinduism?

The Ram Raksha Stotra is considered a powerful prayer that invokes the divine presence of Lord Rama, providing protection, well-being, and spiritual growth for the reciter and their loved ones.

How many verses are in the Ram Raksha Stotra?

The Ram Raksha Stotra is composed of 38 shlokas (verses), each rich with poetic beauty and profound meaning.

What are the key themes of the Ram Raksha Stotra?

The key themes of the Ram Raksha Stotra include invocation and praise of Lord Rama, protection over the body, protection in daily life, and devotional surrender to Lord Rama's will.

How should one recite the Ram Raksha Stotra for maximum benefits?

To maximize the benefits of the Ram Raksha Stotra, it is recommended to chant it with a pure heart and focused mind, cleanse oneself and the space before reciting, focus on devotion, incorporate it into daily routine, and understand the meaning of the verses.

Why is regular practice of the Ram Raksha Stotra important?

Regular practice of the Ram Raksha Stotra helps build a strong spiritual habit, fosters a deeper connection with the divine, and strengthens one's spiritual resolve.

Can understanding the meaning of the Ram Raksha Stotra enhance the devotional experience?

Yes, while the sound and rhythm of the Sanskrit words have their own power, understanding the meaning of the verses can greatly enhance the devotional experience and deepen the connection with Lord Rama.

What is the origin story of the Ram Raksha Stotra?

The Ram Raksha Stotra is said to have been divinely transmitted to Sage Budha Kaushika by Lord Shiva in a dream, underscoring its spiritual potency and sanctity within Hindu lore.

What does the Ram Raksha Stotra protect against?

The Ram Raksha Stotra is believed to create a spiritual shield around the devotee, protecting them from negative influences and ensuring their well-being in various aspects of life and the physical body.